हिन्दू धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल और चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी, भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है। जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी एक बेहद रहस्यमय कहानी प्रचलित है, जिसके अनुसार मंदिर में मौजूद भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के भीतर स्वयं ब्रह्मा विराजमान हैं।
पुराणों में जगन्नाथ धाम की काफी महिमा है, इसे धरती का बैकुंठ भी कहा गया है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा सबसे दाई तरफ स्थित है। बीच में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है और दाई तरफ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) विराजते हैं।
वर्तमान में जो मंदिर है वह 7वीं सदी में बनवाया था। हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व 2 में भी हुआ था। यहां स्थित मंदिर 3 बार टूट चुका है। 1174 ईस्वी में ओडिसा शासक अनंग भीमदेव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे-बड़े मंदिर स्थापित हैं।
हर साल ओडिशा प्रान्त के पुरी जिले में भगवान ‘जगन्नाथ जी‘ की रथयात्रा निकाली जाती है। ये परंपरा पिछले लगभग 500 सालों से चली आ रही है। इस रथ यात्रा से कई तरह की मान्यताएं जुड़ी हैं। इसी के साथ इस यात्रा और खुद जगन्नाथ मंदिर को लेकर कई तरह चौंकाने वाली बातें जुड़ी हैं। जानिए इस यात्रा और मंदिर से जुड़े कुछ चौंकाने वाले रहस्य…
1. हवा की उलटी दिशा
मंदिर के पास हवा की दिशा भी हैरान करती है। ज्यादातर समुद्री तटों पर हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, पुरी में ऐसा बिल्कुल नहीं है यहां हवा जमीन से समंदर की तरफ चलती है और यह भी किसी रहस्य से कम नहीं है। आम दिनों में हवा समंदर से जमीन की तरफ चलती है। लेकिन, शाम के वक्त ऐसा नहीं होता है।
2. गुम्बद नहीं दिखता
जगन्नाथ मंदिर 4 लाख वर्गफुट में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर की इतनी ऊंचाई के बाद भी आप पास खडे़ होकर भी आप गुंबद नहीं देख सकते।
3. मंदिर की परछाई नहीं दिखती
विज्ञान के अनुसार, किसी भी चीज पर सूरज की रोशनी पड़ने पर उसकी छाया जरूर बनती हैं। मगर इस मंदिर के शिखर की कोई छाया या परछाई दिखती ही नहीं है।
4. मंदिर के शिखर पर पक्षी नहीं उड़ते
जगन्नाथ मंदिर के ऊपर कोई भी पक्षी आज तक उड़ता हुआ नहीं देखा गया है। मंदिर के शिखर के पास पक्षी या कोई भी चिड़ियां उड़ते हुए नहीं दिखाई दिए है। यहां तक मंदिर के उपर विमान उड़ाना भी निषेध है।
5. अन्न कभी खत्म नहीं होता
जगन्नाथ मंदिर के रसोईघर को दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है। मान्यता है कि कितने भी श्रद्धालु मंदिर आ जाए, लेकिन अन्न कभी भी खत्म नहीं होता। मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
6. अनोखी रसोई
मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। यह प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है।
7. हवा के विपरीत दिशा में ध्वज लहराता है
इस मंदिर के शिखर पर लगा हुआ सुदर्शन चक्र मंदिर की शान है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि आप उसे कहीं से भी देख लें यह आपको सीधा ही नजर आएगा। अष्टधातु से निर्मित यह चक्र बेहद पवित्र माना जाता है। करीब 200 साल पहले इसे मंदिर में स्थापित किया गया था जो इसको स्थापित करने की तकनीक आज भी रहस्य है।
8. मंदिर के अंदर बहार की आवाज नहीं आती
मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करने के बाद मंदिर के अंदर समंदर की कोई भी आवाज सुनाई नहीं देती। इसके अलावा मंदिर के ऊपर लगा ध्वज भी हवा की विपरित दिशा में लहराता रहता है।
9. रोज बदलते हैं ध्वज
इसके अलावा मंदिर में हमेशा 20 फीट का त्रिकोणाकार ध्वज लहराता है इसे रोजाना बदला जाता है। एक पुजारी मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदलता है।इसे बदलने का जिम्मा चोला परिवार पर है वह इसे 800 साल से करती चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि अगर ध्वजा रोज नहीं बदला गया, तो मंदिर 18 सालों तक अपने आप बंद हो जाएगा।
10. लकड़ी की मूर्ति है
यहां जगन्नाथ जी के साथ के मंदिरों में भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी हैं। तीनों की मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं। बारहवें वर्ष में एक बार प्रतिमा नई जरूर बनाई जाती हैं, लेकिन इनका आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं। पुरानी मूर्तियों को दफना दिया जाता है कहती है ये मूर्तियां अपने आप विघटित हो जाती है।
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